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सावदा – नीड़ का निर्माण फ़िर
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किसी जगह के टूटने की ढेर सारी कहानियाँ मिलती हैं पर किसी जगह के बनने और बसने की नहीं के बराबर या बहुत कम। इस बनने और बसने की कहानियों ऐसे कई छुपे अहसास और फैसले भी शामिल होते हैं जिन्हें अनदेखा नहीं किया जा सकता। हमारा साथ कई ऐसी जगहों से रहा है जो शहर के निर्माण और विस्थापन की गुत्थी को खोलते हैं। हम बात कर रहे हैं दिल्ली शहर में यमुना पुश्ता में बसे नांगलामाची बस्ती की, जो 2006 में सावदा घेवरा में जा बसी। इस ब्लॉग में दिल्ली शहर में एक नयी जगह के बसने और बनने का सफ़र शामिल है। यह ब्लॉग अंकुर सोसायटी फॉर आल्टरनेटिव्स इन एजुकेशन के सावदा के साथियों के अनुभव और संवाद से बना है। ये साथी हैं- वकील , छाया, सरिता और जीतेन्दर। हमारे इस सफ़र में आप भी हमसफ़र बनें। हमें खुशी होगी।

Khichripur Talkies
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कोई जगह कैसे बनी है? ये सवाल कभी खत्म नहीं होता। जगहें तो असल में हमेशा बनने में रहती हैं। इसके अन्दर बसे रोजाना के दृश्य इसको कभी बनाते हैं तो कभी किसी अधूरी कहानी की तरह कहीं छुपे रह जाते हैं। क्या हम इन दृश्यों और इनके अन्दर की कहानियों में छुपी चीजों से किसी जगह की बुनाई की तस्वीर बना सकते हैं? हमने महसूस किया है इन हलचलों को और उन धड़कनों को, जो हमेशा बनने में रहती हैं, ताज़ा रहती हैं, और ये कभी बासी नहीं होतीं। हम खिचड़ीपुर के साथ संवाद में रहते हैं। हमारी कल्पना में खिचड़ीपुर एक ऐसी जगह के रूप में है, जो संभावनाओं में जीती है। इसमें हमारे साथीदार हैं वे सभी लोग जो खुद के साथ, पड़ोसियों के साथ, लोकैलिटी और शहर के साथ, सफ़र के साथ और अपने रिश्तों के साथ संवाद में रहते हैं।